समास किसे कहते हैं (Samas Kise Kahate Hain): समास शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- संक्षिप्तीकरण या छोटा रूप। कहने का तात्पर्य है कि जब हम अधिक लंबे वाक्य को बोलने या समझाने के लिए एक शब्द का प्रयोग करते हैं, तब हम वहां समास का उपयोग करते हैं।
समास शब्द, सम + आस से बना है। जिसका अर्थ है शब्दों को अच्छी तरह से परस्पर या आस-पास बैठाना।
जब दो या दो से अधिक शब्द आपस में मिलकर सार्थक और संक्षिप्त शब्द बनाते हैं, उसे समास कहते हैं।
जैसे- राजा का महल – राजमहल
देश के लिए भक्ति – देश भक्ति
किसी बात को अनेक शब्दों के कहने के स्थान पर उसे संक्षिप्त या छोटा रूप में लिखना या बोलना ही समास होता है। संक्षिप्त करने पर भी विस्तृत शब्दों के अर्थ में बदलाव नहीं होना ही समास है। यह सभी शब्द आपस में परस्पर संबंध रखते हैं। ये शब्द ही सामासिक शब्द कहलाता है।
नोट- समस्त पद को समास बनाते समय शब्दों के बीच के विभक्ति चिन्ह को हटा देते हैं।
सामासिक शब्द में अधिकांशतः दो पद होते हैं, प्रथम पद और द्वितीय पद। प्रथम पद को पूर्व पद तथा द्वितीय पद को उत्तर पद कहते हैं। उत्तर पद कहने का अर्थ है, बाद में आने वाला पद।
समास विग्रह किसे कहते हैं | Samas Vigrah Kise Kahate Hain
समस्त पद के दोनों पदों को अलग-अलग करना समास विग्रह कहलाता है।
जैसे- पुस्तकालय समस्त पद है।
इसमें पुस्तक शब्द पूर्व पद है तथा आलय उत्तर पद है। आलय का अर्थ होता है- घर। पुस्तकालय शब्द का विग्रह करने पर होता है पुस्तक के लिए आलय।
नीचे कुछ उदाहरणों से यह समझाया जा रहा है।
सामासिक शब्द | समास विग्रह |
---|---|
रसोईघर | रसोई के लिए घर |
राजमहल | राजा का महल |
चौराहा | चार राहों का समूह |
माता-पिता | माता और पिता |
समास के कितने भेद हैं
समास के निम्नलिखित 6 भेद होते हैं-
1. | तत्पुरुष समास |
2. | द्विगु समास |
3. | द्वंद्व समास |
4. | कर्मधारय समास |
5. | अव्ययीभाव समास |
6. | बहुब्रीहि समास |
तत्पुरुष समास किसे कहते हैं | Tatpurush Samas Kise Kahate Hain
तत्पुरुष समास- तत्पुरुष समास में उत्तर पद अर्थात बाद में आने वाले पद की प्रधानता होती है। पूर्व पद यानी पहले आने वाले पद गौण होता है। तत्पुरुष समास में समस्त पद के बीच में आने वाले कारक चिन्ह अर्थात परसर्गों का लोप हो जाता है। इसे ही तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
राजकुमारी – राजा की कुमारी
औषधालय – औषधि के लिए आलय
राजकुमारी तथा औषधालय, इन शब्दों में उत्तर पद (दूसरा पद या बाद का पद) प्रधान है। इसकी महत्ता है। राजकुमारी से राजा का नहीं बल्कि उसकी पुत्री का बोध हो रहा है। इस प्रकार तत्पुरुष समास में उत्तर पद की प्रधानता होती है, तथा पूर्व पद गौण होता है।
इन उदाहरणों में कारक चिन्ह जैसे- की, के लिए विभक्ति चिन्हों का लोप हो गया है।
निम्नलिखित उदाहरणों से हमें यह पता चलेगा कि तत्पुरुष समास में अन्य कारक चिन्हों का लोप किस तरह हो रहा है।
1. कर्म कारक की विभक्ति “को” होता है। इसमें “को” का लोप हो जाता है।
समस्त पद | समास विग्रह |
---|---|
गगनचुंबी | गगन को चूमने वाला |
शरणागत | शरण को आया |
2. करण कारक की विभक्ति ‘से’ तथा ‘के द्वारा’ का लोप
समस्त पद | समास विग्रह |
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अकाल पीड़ित | अकाल से पीड़ित |
3. संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ का लोप
समस्त पद | समास विग्रह |
---|---|
देशभक्ति | देश के लिए |
विद्यालय | विद्या के लिए आलय |
4. अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ का लोप
समस्त पद | समास विग्रह |
---|---|
गुणहीन | गुण से हीन |
भयमुक्त | भय से मुक्त |
5. संबंध कारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’ तथा ‘की’ का लोप
समस्त पद | समास विग्रह |
---|---|
राजकुमार | राजा का कुमार |
जगदीश | जगत के ईश |
घुड़दौड़ | घोड़ों की दौड़ |
6. अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’ तथा ‘पर’ का लोप
समस्त पद | समास विग्रह |
---|---|
वनवास | वन में वास |
घुड़सवार | घोड़े पर सवार |
द्विगु समास किसे कहते हैं | Dvigu Samas Kise Kahate Hain
द्विगु समास- जिस सामासिक पद का पूर्व पद संख्यावाची हो अर्थात जो पद संख्या का बोध कराता हो तथा समस्त पद से समूह का बोध हो उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे-
- तिरंगा – तीन रंगों का समूह
- चौराहा – चार राहों का समूह
- नवरात्र – नौ रात्रियो का समूह
- शताब्दी – शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समूह
- त्रिलोक – तीन लोकों का समाहार
नोट- द्विगु समास के विग्रह में हम समूह अथवा समाहार का प्रयोग कर सकते हैं।
द्वंद्व समास किसे कहते हैं | Dvand Samas Kise Kahate Hain
द्वंद्व समास- जिस सामासिक पद के दोनों पद प्रधान होते हैं। इसमें किसी भी पद का लोप नहीं होता है। इसमें अधिकांशतः दोनों पद एक दूसरे के विलोम होते हैं। द्वंद्व समास का विग्रह करने के लिए और, या, अथवा का प्रयोग किया जाता है। उसे द्वंद्व समास कहते हैं।
जैसे-
- समस्त पद समास विग्रह
- माता-पिता माता और पिता
- हानि-लाभ हानि या लाभ
- अपना-पराया अपना और पराया
- भला-बुरा भला या बुरा
कर्मधारय समास किसे कहते हैं | Karmadharaya Samas Kise Kahate Hain
कर्मधारय समास- जिस सामासिक पद में पूर्व पद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य होता है। अथवा दोनों पदों में उपमेय – उपमान का संबंध होता है। इस सामासिक पद में उत्तर पद प्रधान होता है।
जैसे-
- समस्त पद समास विग्रह
- नीलगगन नीला है जो गगन
- मृगनयन मृग के समान नयन
- महात्मा महान है जो आत्मा
अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं | Avyayibhav Samas Kise Kahate Hain
अव्ययीभाव समास- जिस सामासिक पद में पूर्व पद अव्यय हो तथा उत्तर पद संज्ञा या विशेषण हो तथा समस्त पद क्रिया विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है। उसे अव्ययीभाव समास करते हैं। अव्ययीभाव समास में सामासिक शब्द का रूप नहीं बदलता है। समास विग्रह करने पर भी उसके रूप का अर्थ वही होता है।
जैसे-
- समस्त पद समास विग्रह
- आजीवन जीवन भर
- रातों-रात रात-ही-रात में
- प्रतिवर्ष प्रत्येक वर्ष
- भरपेट पेट भर कर
बहुब्रीहि समास किसे कहते हैं | Bahuvrihi Samas Kise Kahate Hain
बहुब्रीहि समास- सामासिक पद में दोनों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता है, बल्कि दोनों पद मिलकर किसी अन्य पद का बोध कराता है। बहुब्रीहि समास कहलाता है। बहुब्रीहि समास में अन्य पद की प्रधानता होती है।
जैसे-
- समस्त पद समास विग्रह
- चक्रपाणि चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके अर्थात विष्णु
- दशानन दस है आनन (मुख) जिसके अर्थात रावण
- लंबोदर लंबा है उदर (पेट)जिसका अर्थात गणेश
- नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव
- गिरिधर गिरि (पर्वत) को धारण करने वाला अर्थात कृष्ण
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