Blind Man | अंधा आदमी

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Blind Man – Hindi Kahani | अंधा आदमी – हिंदी कहानी : यह कहानी एक संवादात्मक कहानी है जो दो लोगों के बीच वार्तालाप को दर्शाता है । जिसमें बहुत ही गहरी बात छिपी है । इस कहानी में रमेश और सुरेश दो यात्री होते हैं, जिसमे रमेश एक अंधा व्यक्ति होता है, परन्तु सुरेश एक अच्छी दृष्टि वाला व्यक्ति होता है ।

हिंदी कहानी – अंधा आदमी | Hindi Kahani – Blind Man

रमेश — इस यात्री को क्यों नहीं चढ़ने दे रहे हैं आप… इसे भी तो जाना है ।

सुरेश — यह तो कहीं भी चढ़ जाएगा । रह भी गया तो अगली गाड़ी से आ जाएगा । मगर तुम्हें तकलीफ़ होगी, क्योकि तुम देख नही सकते हो ।

रमेश — मुझ पर इतना तरस क्यों खा रहे हैं आप ?

सुरेश — तुम अंधे जो हो…तुम देख नही सकते हो ।

रमेश — मैं ही क्यों, आप भी तो नही देख पा रहे हैं ।

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Blind Man | अंधा आदमी

सुरेश — यह क्या बात कह रहे हो भले इंसान । भगवान ने दृष्टि तुम्हे नहीं दीं है । यह तो दिखाई दे रहा है, परन्तु तुम किस आधार पर मुझे नही दिखाई दे पाने की बात कर रहे हो।

रमेश — आपको तो भगवान ने सब-कुछ दिया है, पर क्या दुनिया का कोई भी काम ऐसा नहीं, जो आप नहीं कर सकते ?

सुरेश — बहुत-से काम हैं । जो मैं नही कर सकता हूँ ।

रमेश — फिर उन कामों को लेकर तो आप भी दृष्टिहीन ही हुए । और तो और, भगवान ने आपको आँखें दी हैं और आप उनका भी सही इस्तेमाल नहीं कर रहे है ।

सुरेश — तुम तो फ़िलोसफ़र लगते हो।

रमेश — कैसे भाई, कैसे मै फिलोसफर लगता हूँ ?

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आपकी आँखें यह नहीं देख रहीं कि दो आदमी हैं और आपका इंसानी फ़र्ज़ है कि आपकी तरह वे भी अपनी मंज़िल पर पहुँच जाएँ, बल्कि आपकी आँखें अन्धे और सुजाखे को देख रही हैं। जो आदमी होकर आदमी को नहीं पहचानता, उससे ज्यादा अपाहिज कोई नहीं होता।

सुरेश — अच्छा-अच्छा, भाषण मत दीजिए । चढ़ना है तो गाड़ी में चढ़िए , वरना … हमें क्या पड़ी है !

रमेश — मुझे मालूम था, आप यही कहेंगे । आपकी तकलीफ़ मैं समझता हूँ… आप एक अन्धे को गाड़ी पर चढ़ाकर पुण्य कमाना चाहते थे, किन्तु धर्मराज की बही में आपके नाम एक पुण्य चढ़ता-चढ़ता रह गया।

सुरेश — पुण्य कमाने के लिए एक आप ही रह गए है ? …..मैं तो इसलिए कह रहा था कि अन्धे बेचारों की हालत तो दो-तीन साल के बच्चों से भी बुरी रहती है ।

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रमेश — वाह ! दो-तीन साल का बच्चा इस तरह गाड़ी पकड़ सकता है क्या ?

सुरेश — बच्चा भला क्या गाड़ी पकड़ेगा अपने आप !

रमेश — मैं अकेला आया हूँ स्टेशन पर… कोई लाया नहीं मुझे।

सुरेश — पुलिस से बचकर भाग रहा होगा… आजकल खूब पिटाई कर रही है।

रमेश — अजी, अपना हक़ माँगने गए थे, भीख माँगने नहीं…लाठी पड़ गई तो क्या हुआ । आप जाइए तो आप पर भी पड़ सकती हैं लाठियाँ तो …।

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सुरेश — हम तो कैसे भी बचाव कर सकते हैं अपना… मगर तुम… !

रमेश — देख लीजिए, जीता-जागता खड़ा है यह रमेश आपके सामने।

सुरेश के पास कोई जवाब नहीं बन पड़ा । गाड़ी, जो सीटी दे चुकी थी, अब चल पड़ी । रमेश ने लपककर डण्डा पकड़ते हुए अपने पाँव पायदान पर जमा दिए । लोग उसका हाथ थामकर उसे डब्बे के अन्दर लेने की कोशिश करने लगे… और रमेश बड़ी मजबूती-से डण्डा थामे कहता रहा — इंसान को संभालना इंसान का फ़र्ज है… इस नाते मैं आपकी तारीफ़ करता हूँ… पर मुझे अन्धा आदमी समझकर मुझ पर दया मत कीजिए… मुझे अपने लायक बनने दीजिए… अन्धा हो चुका… मोहताज नहीं होना चाहता… !

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और गाड़ी तेज होती चली गई।

सुरेश मूकदर्शक बन वही खड़ा रह गया । वह कभी गाड़ी को देखता तो कभी रमेश को।

और गाड़ी उसकी आँखों से ओझल हो गई।

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