अहंकार – नैतिक कहानी (Ahankar – Moral Story) – एक बार एक चित्रकार ने अपने बेटे को अपनी तरह चित्रकारी करने की शिक्षा देने की सोची। वह अपने बेटे को बहुत ही लगन से चित्रकारी की शिक्षा देने लगा। चित्रकार का बेटा भी अपने पिता के द्वारा दी गई शिक्षा से एक अच्छा चित्रकार बन गया। दोनों साथ में अपनी बनाई गई चित्र को बाजार में बेचने जाते। पिता की बनाई हुई चित्र की कीमत 100रु मिलते थे। मगर बेटे की चित्रों की कीमत काफी कम लगाई जाती थी। ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे।
बाजार से आने के बाद चित्रकार अपने बेटे को अपने पास बैठाया और चित्र बनाने में आई कमियों के बारे में बताता। वह अपने बेटे को उससे हुई गलती को सुधारने के लिए भी कहता था। यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा। बेटा काफी समझदार था। उसने अपने पिता के सभी बातों को बड़े ही ध्यान से सुनता और अपनी कला में सुधार करने का प्रयत्न करता रहा। कुछ समय बाद बेटे की बनाई हुई चित्रों की कीमत ज्यादा मिलने लगी।
चित्रकार हमेशा की तरह अपने बेटे को उसी तरह समझाता और चित्र बनाने में होने वाले कमी के बारे में बताता। बेटा ने अपनी कला पर और भी ज्यादा ध्यान दिया। जिससे उसकी कला और भी अधिक अच्छी होने लगी। उसकी चित्रकारी के लिए पहले से अधिक पैसे मिलने लगे। चित्रकार अपने बेटे के द्वारा बनाए गए चित्रों में कमियां निकालने का काम अब भी जारी रखा। एक दिन बेटे ने खींझ कर कहा- आप हमेशा मेरे चित्रों में कमियां ही निकालते हैं। कभी भी तारीफ नहीं करते।
इससे मैं अब ऊब गया हूं। मेरे द्वारा बनाए गए चित्रों की कीमत आप की चित्रों से कहीं अधिक मिलने लगी है। चित्रकार ने बेटे से कहा- बेटा जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तब मुझे मेरी कला का अहंकार हो गया था और फिर मैंने अपने कला में सुधार करने का काम छोड़ दिया। जिससे मेरी चित्रों की कीमत ज्यादा नहीं बढ़ सकी। तुम अपनी गलतियों को समझो और उसमें सुधार करते रहो। ताकि तुम अपने चित्रों को और सुंदर बना सको जिससे तुम्हारा नाम रोशन हो सके।
शिक्षा
यह कहानी हमें बताती है कि जब हम अपने अहंकार को छोड़कर कोई कार्य करते हैं तब हम उसमें अपना श्रेष्ठ योगदान देते हैं।
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aapke kahaniya bohot achhi hai