Maulik Adhikar in Hindi (मौलिक अधिकार): मौलिक अधिकार उस अधिकार को कहते हैं जो भारत के नागरिकों के अधिकारों को सामान्य स्थिति में सरकार द्वारा हस्तक्षेप या सीमित नहीं किया जा सकता है। मौलिक अधिकार को भारत के संविधान के तीसरे खंड में वर्णन किया गया है। जिनकी सुरक्षा का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है। यह अधिकार भारत के नागरिकों को आश्वस्त करता है कि वह भारत के नागरिक हैं। वह स्वतंत्रता तथा समानता के साथ शांतिपूर्वक जीवन यापन कर सकते हैं।
जैसे कि पहले से ज्ञात है कि भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है। संविधान में विस्तृत तथा बड़ा ही व्यापक रूप से सभी मौलिक अधिकारों (Maulik Adhikar in Hindi) का वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान के भाग 3 का भारत का अधिकार पत्र (मैग्नाकार्टा) कहा जाता है। यह अधिकार पत्र मूल अधिकारों से संबंधित दस्तावेज है। इस दस्तावेज को मूल अधिकारों का जन्मदाता कहा गया है। सन 1689 में बिल ऑफ राइट्स नामक दस्तावेज लिखा गया। जो इंग्लैंड के सम्राट जॉन ने सभी महत्वपूर्ण अधिकारों एवं स्वतंत्रता का समावेश किया था। भारत के संविधान की जब रचना की जा रही थी तब संविधान के निर्माताओं ने मूल अधिकारों को संविधान में समावेश किया।
मौलिक अधिकारों (Maulik Adhikar in Hindi) के रचना के पीछे का मकसद था कि सरकार, जनता पर अपने मतलब को पूरा करने के लिए बाध्य ना करें। अर्थात सरकार पर अंकुश रखा जाए। साथ-ही-साथ राज्य सरकारों का दायित्व भी होता है कि वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करें तथा समाज द्वारा लोगों पर अतिक्रमण ना हो। भारत के संविधान में नागरिकों को छह मौलिक अधिकार (Maulik Adhikar in Hindi) प्रदान किए गए हैं।
Table of Contents
हमारे मौलिक अधिकार |Maulik Adhikar in Hindi
1 | समता का अधिकार |
2 | स्वतंत्रता का अधिकार का अधिकार |
3 | शोषण के विरुद्ध अधिकार |
4 | धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार |
5 | संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार |
6 | संवैधानिक उपचारों का अधिकार |
प्रारंभ में मौलिक अधिकार (Maulik Adhikar in Hindi) सात थे। जिसमें संपत्ति का अधिकार भी शामिल था। परंतु इसे 44वे संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा 1978 में मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया। इसे संविधान के भाग 12 में अनुच्छेद 300 (A) के अंतर्गत कानूनी अधिकार बना दिया गया।
समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)
अनुच्छेद 14 के अंतर्गत राज्य का हर वासी विधि के समक्ष एक समान है। कहने का तात्पर्य है कि राज्य के अंदर सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून लागू किया जाएगा। किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए अलग-अलग कानून नहीं होगा तथा सभी पर एक समान रूप से लागू किया जाएगा।
अनुच्छेद 15 के अंतर्गत धर्म, जाति, नस्ल, लिंग तथा जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करना निषेध है। अर्थात राज्य के नागरिकों को किसी भी जाति, लिंग, धर्म व आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन में किसी भी प्रकार का भेदभाव करना मना है।
अनुच्छेद 16 के अंतर्गत “लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता” राज्य के नागरिकों को किसी भी क्षेत्र जैसे- सरकारी या गैर सरकारी पद पर कार्य तथा नियुक्ति से संबंधित विषयों में एक समान अवसर दिया जाएगा।
नोट – समाज के कुछ वर्ग जैसे- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग को छोड़कर
अनुच्छेद 17 के अंतर्गत “अस्पृश्यता का अंत” समाज से छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बनाया गया है। अस्पृश्यता को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
अनुच्छेद 18 के अंतर्गत “उपाधियों का अंत” राज्य सेना तथा शिक्षा संबंधी सम्मान के अतिरिक्त कोई भी उपाधि प्रदान नहीं करेगा। राज्य के नागरिक किसी भी विदेशी राज्य से कोई उपहार या भेंट स्वीकार नहीं कर सकता है। इसके लिए उसे राष्ट्रपति की आज्ञा प्राप्त करनी होगी।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
अनुच्छेद 19 के अंतर्गत “स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है” बोलने की स्वतंत्रता तथा अपने मन के भाव अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता दी गई है। संघ बनाने की स्वतंत्रता दी गई है। बिना हथियारों के शांतिपूर्वक एकत्रित होने तथा सभा करने की स्वतंत्रता दी गई है।
देश के किसी भी क्षेत्र में आने-जाने की स्वतंत्रता दी गई है। कोई भी व्यक्ति नैतिक और कानून के अंदर रहकर व्यापार करने तथा जीविका चलाने के लिए स्वतंत्रत है।
अनुच्छेद 20 के अंतर्गत “अपराधों के लिए दोष के संबंध में संरक्षण की स्वतंत्रता”
किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक बार सजा दी जाएगी। किसी भी व्यक्ति पर स्वयं के विरोध में न्यायालय में गवाही देने के लिए दबाव नहीं दिया जा सकता है। जब तक कि वे स्वेक्षा से ना स्वीकार करें।
अनुच्छेद 21 के अंतर्गत “प्राण तथा शारीरिक स्वतंत्रता का संरक्षण”
इस अनुच्छेद के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्राण तथा शरीर की रक्षा करने की स्वतंत्रता दी गई है। 86 वां संशोधन अधिनियम द्वारा राज्य 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क तथा शिक्षा की स्वतंत्रता दी गई है।
अनुच्छेद 22 के अंतर्गत “गिरफ्तारी तथा निवारक निरोध में संरक्षण का अधिकार दिया गया है”
यदि किसी व्यक्ति को बिना किसी ठोस कारण के हिरासत में लिया जाता है, तो उसे अपने बचाव के लिए तीन प्रकार के अधिकार दिए गए हैं।
- हिरासत में लेने का कारण बताना होगा।
- 24 घंटे के समय के अंदर उसे दंडाधिकारी (जज) के सामने उपस्थित किया जाएगा।
- उस व्यक्ति को अपने वकील से सलाह लेने का अधिकार दिया जाएगा।
निवारक निरोध
निवारक निरोध कानून वह कानून है जिसके अंतर्गत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को उसके अपराध करने के पूर्व ही गिरफ्तार किया जाता है। निवारक निरोध कानून का उद्देश्य यह होता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके द्वारा भविष्य में किए जाने वाले अपराध पर रोक लग सके। निवारक निरोध कानून राज्य की सुरक्षा लोकजन में शांति तथा नियम कानून को बनाए रखने में किया जाता है। इस नियम के अधीन जब कोई व्यक्ति बंदी बनाया जाता है तो इसके लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
- बंदी बनाए गए संदिग्ध व्यक्ति को 3 महीने तक जेल में कैद कर सकती है। अगर व्यक्ति को अधिक समय
- तक जेल में रखने की जरूरत पड़े तो इसके लिए सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का मंजूरी प्राप्त करना होता है।
- बंदी बनाया गया व्यक्ति निवारक निरोध आदेश के विरुद्ध आवेदन कर सकता है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 23 से 24
मानव दुर्व्यवहार और बाल श्रम का प्रतिषेध
अनुच्छेद 23 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति की क्रय-विक्रय, बेगारी कराना तथा उससे किसी भी कार्य को जबरदस्ती नहीं कराया जा सकता है। यह एक दंडनीय अपराध है ।
अनुच्छेद 24 के अंतर्गत– 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों या अन्य किसी भी कठिन कार्य जिसमें जान जोखिम में पड़े कराना निषेध है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 से 28
अनुच्छेद 25 के अंतर्गत राज्य का कोई भी व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता से किसी भी धर्म को मान सकता है। वह अपने धर्म का प्रचार प्रसार भी कर सकता है।
अनुच्छेद 26 के अंतर्गत- कोई भी व्यक्ति अपना धार्मिक कार्य का प्रबंध कर सकता है। उसकी स्थापना तथा पोषण कर सकता है।
अनुच्छेद 27 के अंतर्गत- किसी व्यक्ति को अपने धर्म के प्रचार तथा उन्नति के लिए संचित किया हुआ धन पर कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 28 के अंतर्गत- राज्य के कानून के अनुसार किसी भी शिक्षण संस्थान में धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती है। अगर कोई शिक्षण संस्थान धार्मिक अनुष्ठान समारोह का आयोजन करता है तो वह अपने विद्यार्थियों को इस में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार 29 से 30
अनुच्छेद 29 के अंतर्गत- अल्पसंख्यक वर्ग के हितों के संरक्षण का अधिकार दिया गया है। अल्पसंख्यक वर्ग को उनकी भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर सरकारी सुविधा तथा नौकरी से वंचित नहीं रखा जा सकता है।
अनुच्छेद 30 के अंतर्गत- अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षा का विशेष अधिकार दिया गया है। उन्हें शैक्षणिक संस्था चलाने तथा सरकार द्वारा अनुदान लेने का अधिकार प्राप्त है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 32 से 35
डॉ भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार (Maulik Adhikar in Hindi) को संविधान की आत्मा कहा है। संवैधानिक उपचार के अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित पांच प्रकार के प्रावधान है-
- बंदी प्रत्यक्षीकरण- बंदी प्रत्यक्षीकरण से स्पष्ट हो रहा है की बंदी बनाए गए व्यक्ति के प्रार्थना पर न्यायालय उस व्यक्ति को न्यायालय में निश्चित समय पर हाजिर होने का आदेश जारी करता है। जहां पर उसके बंदी बनाए जाने के कारणों का पता किया जाता है। अगर गिरफ्तारी का कारण गैरकानूनी तरीके से या संतोषजनक न मिलने पर न्यायालय उस व्यक्ति को आजाद करने का आदेश जारी कर सकता है।
- परमादेश न्यायालय- परमादेश तब जारी होता है, जब उसे लगता है कि कोई सरकारी उच्च अधिकारी अपने कानूनी तथा संवैधानिक अधिकारों तथा कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है। परमादेश पर न्यायालय उच्च पदाधिकारी को उसे कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी करता है।
- प्रतिषेध लेख या निषेधाज्ञा- जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर किसी मुकदमे की सुनवाई और अपना निर्णय सुनाता है, तो सर्वोच्च न्यायालय उसे ऐसा करने से रोक लगाने के लिए निषेधाज्ञा या प्रतिषेध लेख जारी करता है।
- अधिकार पृच्छा लेख- जब कोई व्यक्ति, सरकारी व्यक्ति या पदाधिकारी अपने मुख्य कार्य के अधिकार से बाहर अतिरिक्त अधिकार का उपयोग करता है। जिसे कार्य करने का उसे कानूनी रूप से अधिकार नहीं है तब सर्वोच्च न्यायालय उसे अधिकार पृच्छा के आदेश पर यह पूछता है कि वह किस अधिकार के तहत कार्य कर रहा है। संतोषजनक उत्तर न दे पाने की स्थिति में न्यायालय उसे व कार्य करने से रोक लगाती है।
- उत्प्रेषण- जब कोई निचली अदालत या पदाधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है। तब सर्वोच्च न्यायालय यह निर्देश देता है कि उसके समक्ष उपस्थित मुकदमों की सुनवाई ऊपरी अदालत को हस्तांतरित कर दे।
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FAQ – About Maulik Adhikar in Hindi
हमारे मौलिक अधिकार कितने हैं?
भारत का संविधान 6 मौलिक अधिकार प्रदान करता है
6 मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं?
भारत का संविधान 6 मौलिक अधिकार प्रदान करता है-
समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
भारतीय संविधान के जनक कौन है?
डॉ भीमराव अम्बेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान का जनक भी कहा जाता है।
भारत का संविधान कितने दिनों में बनकर तैयार हुआ था?
भारत का संविधान बनने में 2 वर्ष, 11 माह 18 दिन लगे थे। 26 नवंबर, 1949 को यह पूरा हुआ था लेकिन 26 जनवरी, 1950 को भारत गणराज्य का यह संविधान लागू हुआ था।
संविधान किसने लिखा?
संविधान की असली कॉपी, कैलिग्राफर (सुलेखक) प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा लिखी गई थी।