शिकारी झाड़ियाँ – तेनालीराम की कहानी | Shikari Jhadiyan – Tenalirama Ki Kahani

शिकारी झाड़ियाँ - तेनालीराम की कहानी (Shikari Jhadiyan - Tenalirama Ki Kahani)

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शिकारी झाड़ियाँ – तेनालीराम की कहानी (Shikari Jhadiyan – Tenalirama Ki Kahani): महाराज कृष्णदेव राय हर साल ठंड के मौसम में नगर के बाहर डेरा लगाकर रहते थे। उनके साथ उनके दरबारी और सैनिक भी रहते थे। जो उनकी सुरक्षा करते थे। ऐसा वे अपने कार्य को विराम देने और शरीर में फिर से नई स्फूर्ति आए, इसलिए वह ऐसा करते थे। उस दौरान गीत-संगीत तथा किस्से-कहानियों का दौर चलता था। वह शिकार पर भी जाते थे।

ऐसे ही एक बार महाराज शिकार पर गए। उनके साथ उनके सैनिक और दरबारी भी थे। तेनालीराम, महाराज के प्रिये सलाहकार थे। इसलिए महाराज ने उन्हें भी साथ में चलने के लिए कहा। महाराज की बात सुनकर उनके एक प्रतिद्वंदी दरबारी कहने लगा- रहने दीजिए महाराज! तेनालीराम जी की उम्र हो गई है। वह शिकार पर जाएंगे तो जल्दी ही थक जाएंगे। उस दरबारी की बात सुनकर सभी हंसने लगे। परंतु तेनालीराम ने कुछ नहीं बोला। महाराज ने दरबारी की बात को महत्व न देते हुए, तेनालीराम को शिकार पर चलने को कहा।

शिकारी झाड़ियाँ - तेनालीराम की कहानी Shikari Jhadiyan - Tenalirama Ki Kahani
शिकारी झाड़ियाँ – तेनालीराम की कहानी Shikari Jhadiyan – Tenalirama Ki Kahani

शिकारी झाड़ियाँ – तेनालीराम की कहानी | Shikari Jhadiyan – Tenalirama Ki Kahani

महाराज के कहने पर तेनालीराम भी एक घोड़े पर सवार होकर काफिले के साथ चल पड़े। कुछ समय बाद काफिला जंगल के बीच पहुंच गया। शिकार करने के लिए महाराज ने जैसे ही नजरे इधर-उधर दौड़ाई। वैसे ही उन्हें एक हिरण दिखाई दिया। हिरण पर निशाना साधने के लिए जैसे तीर चलाने की कोशिश की, हिरण वहां से तुरंत भाग गया। महाराज अपने घोड़े पर सवार होकर हिरण का पीछा करने लगे।

महाराज को हिरण के पीछे जाते देख, अन्य दरबारी के साथ-साथ तेनालीराम भी महाराज का पीछा करने लगे। जैसे ही महाराज ने हिरण पर निशाना साधा, वह एक घने झाड़ियों में भाग गया। महाराज भी निशाना लगाने के लिए हिरण के पीछे झाड़ियों में जाने लगे। तभी तेनालीराम ने पीछे से महाराज को रोका।

तेनालीराम के रोकने की वजह से महाराज का ध्यान भंग हो गया और उनका निशाना फिर से चूक गया। हिरण के झाड़ियों में जाते ही महाराज ने पलट कर गुस्से से तेनालीराम को देखा। महाराज ने डांटते हुए तेनालीराम को बोला कि उसने झाड़ियां में जाने से क्यों रोका।

महाराज के डांट सुनने पर भी तेनालीराम चुप रहा। महाराज ने एक सैनिक को पेड़ पर चढ़कर झाड़ियों के उस पार देखने को कहा। महाराज के कहने पर सैनिक ने देखा कि वह हिरण, जिसका महाराज पीछा कर रहे थे। वह एक कंटीली झाड़ियों में फंसा हुआ है। वह बहुत ही घायल और तड़प रहा है। वह हिरण अपने आप को किसी तरह उन कंटीली झाड़ियों से मुक्त किया और जंगल की ओर भाग गया।

पेड़ से उतरकर सैनिक ने महाराज को पूरी आंखों देखी बात सुनाई। सैनिक की बात सुनकर महाराज को बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने तेनालीराम को पास बुलाकर पूछा कि क्या उसे पहले से पता था कि वहां कंटीली झाड़ियां है?

महाराज की बात सुनकर तेनालीराम ने कहा- जंगल में कई ऐसी झाड़ियां होती हैं। जो व्यक्ति को लहू-लुहान करके अधमरा छोड़ देती है। हिरण की रुदन जैसी आवाज सुनकर मुझे शक हो गया था कि वह कंटीली झाड़ियों में फंस चुका है। इसलिए मैं वहां जाने से आपको रोक। जंगल में ऐसे ही शिकारी झाड़ियां होती हैं। जिसकी जानकारी हमें वहां जाने से पहले ले लेनी चाहिए।

तेनालीराम की सूझ-बूझ भरी बातें सुनकर महाराज का सीना चौड़ा हो गया। महाराज ने अन्य दरबारी की ओर देखते हुए कहा कि तुम लोग नहीं चाहते थे कि तेनालीराम शिकार पर आए। लेकिन आज उसके यहां होने से मेरे ऊपर आने वाली मुसीबत को उसने टाल दिया। महाराज ने गर्व के साथ तेनालीराम को शाबासी दिया।

कहानी की सीख

हमें अपने लक्ष्य को पाने के लिए आंख मूंदकर उसके पीछे भागना नहीं चाहिए। बल्कि हमें उसे पानी में आने वाले नुकसान और कठिनाइयों पर भी ध्यान देना चाहिए। तभी हम अपने लक्ष्य तक सुरक्षित पहुंच पाएंगे।

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